पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना और चीन सेना पीछे हटना शुरू
पिछले 4 सालों से चला आ रहा गतिरोध अब समाप्त होने वाला हैं क्योंकि भारत और चीन सेना पीछे हटना शुरू हो गई है।
इस तरह से विभिन्न स्तर पर हुई बातचीत के बाद पूर्वी लद्दाख से भारत और चीन सेना पीछे हटना शुरू हो चुकी हैं।सोमवार को इस घोषणा के बाद बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रूस के कज़ान में BRICS नेताओं की बैठक के दौरान द्विपक्षीय मुलाकात भी हुई।
12 सितंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स के उच्च-स्तरीय सुरक्षा अधिकारियों की बैठक के दौरान चीन के विदेश मंत्री और केंद्रीय विदेश मामलों के आयोग के कार्यालय के निदेशक वांग यी से मुलाकात की. विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इस साल जुलाई और अगस्त में वांग यी से जल्दी-जल्दी दो बार मुलाकात की. साथ ही जुलाई और अगस्त में एक महीने के भीतर भारत-चीन सीमा मामलों पर सलाह एवं समन्वय के लिए कार्यकारी ढांचे (WMCC) की दो बैठकें की गई हैं.
भारतीय अधिकारियों के सुर में साफ तौर पर नरमी दिख रही है. डोभाल ने जुलाई 2023 में एक मीटिंग के दौरान वांग यी से कहा था कि लद्दाख में सैन्य गतिरोध ने दोनों देशों के बीच “रणनीतिक विश्वास को ख़त्म” कर दिया है लेकिन इस बार वो लद्दाख में सैनिकों को हटाने (डिसएंगेजमेंट) का हल करने के काम में “जल्दबाज़ी” की बात से संतुष्ट थे.
विदेश मंत्री जयशंकर के रुख में भी इसी तरह का बदलाव नज़र आया. 12 सितंबर को जिनेवा के ग्लोबल सेंटर ऑफ सिक्युरिटी पॉलिसी में बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि “हमने कुछ प्रगति की है. मैं कहूंगा कि मोटे तौर पर आप कह सकते हैं कि सैनिकों की वापसी से जुड़ी लगभग 75 प्रतिशत समस्या का समाधान हो गया है.” हालांकि उन्होंने ये भी जोड़ा कि अभी भी कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें करने की ज़रूरत है, विशेष रूप से उस समय जब दोनों पक्ष सैनिकों को सीमा के नज़दीक ले आए थे.
फिर भी भारत और चीन के बीच बातचीत के ताज़ा दौर के बावजूद इस बात का कोई संकेत नहीं है कि हम पूर्वी लद्दाख में जटिल सीमा मुद्दे के समाधान के करीब पहुंच पाए हैं. PLA (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) की तरफ से स्थापित किए गए अवरोधों, जिसकी वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के छह सामरिक बिंदुओं पर भारतीय सैनिक अपने दावे वाले हिस्से में गश्त नहीं कर पा रहे हैं, को हटाने के लिए चीन को मनाने की कोशिश के तहत भारत पिछले चार वर्षों से चीन से बातचीत कर रहा है. ये बिंदु हैं देपसांग बल्ज, गलवान क्षेत्र, कुगरांग नदी की घाटी में दो इलाके, पैंगोंग झील का उत्तरी किनारा और देमचोक में चारदिंग-निंगलुंग नाला इलाका. इसी तरह चीन ने बिना किसी पूर्व जानकारी के नियंत्रण रेखा पर 50-60,000 सैनिकों को तैनात किया था जबकि 1996 के चीन-भारत समझौते के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य क्षेत्र में तैनाती की जानकारी दी जानी चाहिए थी. अभी तक चीन ने इन कार्रवाइयों के पीछे कोई कारण नहीं बताया है. शुरुआत में भारत हैरान हो गया लेकिन इसके बाद उसने भी चीन का मुकाबला करने के लिए पूर्वी लद्दाख में अपने सैनिकों को तैनात किया.
चीन की प्रवक्ता के अनुसार 12 सितंबर की बैठक में वांग और डोभाल ने “सीमा के मुद्दों पर हाल की बातचीत में की गई प्रगति” को लेकर चर्चा की. उन्होंने बताया कि “पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों की सेनाओं ने गलवान घाटी समेत चीन-भारत सीमा के पश्चिमी सेक्टर के चार क्षेत्रों में सैनिकों को हटाने का काम पूरा किया है.” उन्होंने ये भी जोड़ा कि चीन-भारत सीमा पर स्थिति सामान्य रूप से स्थिर और नियंत्रण में है.
भारत की तरफ से प्रेस रिलीज़ का लहज़ा थोड़ा अलग था. इसमें कहा गया कि बैठक ने दोनों पक्षों को एक अवसर मुहैया कराया कि “वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बाकी मुद्दों का जल्द समाधान तलाशने की दिशा में प्रयासों की समीक्षा की जा सके जो द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और फिर से बनाने के लिए एक स्थिति तैयार करेगा.” इसमें ये भी जोड़ा गया कि दोनों पक्ष इस बात के लिए सहमत हुए कि “बाकी क्षेत्रों में सैनिकों को पूरी तरह से हटाने के लिए तत्परता से काम करें और अपने प्रयासों को दोगुना करें.”
डोभाल ने वांग से कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाल करना “द्विपक्षीय रिश्तों में सामान्य स्थिति के लिए ज़रूरी” है. उन्होंने ये जोड़ा कि दोनों पक्षों को मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों और प्रक्रियाओं का पालन करने की आवश्यकता है.
दोनों बयानों पर गौर से नज़र डालने से पता चलता है कि जहां चीन ये कहना चाहता है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में हालात सामान्य होने के करीब है, वहीं भारत के रुख से संकेत मिलता है कि अभी और काम करने की ज़रूरत है.
जयशंकर की टिप्पणी और वांग-डोभाल की मुलाकात बीजिंग में 29 अगस्त को भारत-चीन सीमा मामलों पर सलाह एवं समन्वय के लिए कार्यकारी ढांचे (WMCC) की 31वीं मीटिंग के दो हफ्ते के बाद हुई है. WMCC की 31वीं मीटिंग भी 31 जुलाई को आयोजित 30वीं मीटिंग के एक महीने के भीतर हुई. इससे पता चलता है कि पूर्वी लद्दाख के मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच विचार-विमर्श की गति में तेज़ी आई है. WMCC दोनों पक्षों के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के बीच बैठक का सर्वोच्च स्तर है. लेकिन इसकी पिछली बैठक और सेना की बैठक का 21वां दौर, जिसमें दोनों पक्षों के कोर कमांडर शामिल थे, फरवरी में आयोजित किया गया था और उसके बाद से कोई मीटिंग नहीं हुई थी.
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